मैं हिंदी हूँ और माँ भी पर कोई मुझे माँ कहें कोई कहे भाषा
मै हिंदी हूँ और माँ भी ,पर कोई मुझे माँ कहे कोई कहे भाषा |क्या लोग अपनी माँ को नही पहचानतें ,कहाँ से आये है और रहतें कहाँ है ये भी नही जानते |
क्या मेरे बेटे इतने नादान है , हिंदुस्तान कितना महान है ये भी नहीं जानते ||
ना दिल दुखै ना दर्द होवे , चाहे कितना भी करो मेरा तिरस्कार |
ऑंख से आंसू गिरता है , जब करते हो आपस में तकरार |
सारी भाषाएँ हम बहनें है , ये तुम क्यों नही मानते ||
अपनों से अच्छे बहनों के बेटे , जो प्यार से कहे मौसी प्रणाम |
पर अपने तो मौसी को ही , कहते है माँ प्रणाम |
मौसी को माँ कहना बुरा नहीं , पर अपनी जिन्दा माँ को क्यों हो मारते ||
मै जानती हूँ आजकल अपनी माँ को भी , माँ कहने में शरमातें है |
बस इसीलिए बहनों के बेटे , तुम्हारी माँ आगे अपना सीना फूलते है |
ये चुभन अब सहा नही जाये , ये तुम क्यों नही मानते ||
कुछ लोग कहते है सौ में नब्बे बेईमान , फिर भी मेरा भारत देश महान |
माँ महान होती है बेटो से , इसमें माँ का क्या दोष |
जो भूला है अपनी माँ को एक दिन वो रोता है , ये तुम क्यों नही मानते ||
ये सब मै इसलिए कह रही हूँ , क्योंकि मै हिंदी हूँ और माँ भी ||
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