Wednesday, March 10, 2010

न जाने कहाँ प्यार खो गया है .

ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है .|
हर गाने के बोल में शब्दों के तोल में प्यार का ही जलवा है |
फिर भी ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है  ||
हर दिल के धड़कन में महबूब के तडपन में प्यार का ही जलवा है |
फिर  भी ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है  ||
ढूडने निकला जब प्यार , प्यार के दोस्त मिल गये चार  |
आंसू, धोखा , तड़प और जुदाई , तो मैंने पूछा प्यार को किसी ने देखा है भाई |
तो सब ने कहा प्यार के संग , धोखा का जलवा है |
फिर भी ऐसा लगता है मुझे , न जाने कहाँ प्यार खो गया है ||
खोजत देख प्यार को ,लगी जुदाई नीर बहाने |
अनेक रूप रंग अनेक , ऐसे प्यार को कौन पहचाने |
पाता है जो सच्चे प्यार को , बस उसी का जलवा है |
फिर भी ऐसा लगता है मुझे न , जाने कहाँ प्यार खो गया है ||
आंसू झर झर झर  कर बोले , प्यार को लोग खून से तौले |
प्यार हो तो आंसू  धोखा हो तो आंसू , जबकि प्यार में दो दिल खिले |
आंसू से जो दूर रहे बस उसी का जलवा है |
फिर भी ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है ||
बात ख़तम नहीं हुई आंसू की , तड़प लगी गरजने |
तेरे संग कंकाल हुई मै आंसू पे लगी बरसने |
बोली प्यार से जो दूर रहे बस उसी का जलवा है |
फिर भी ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है ||
आखिर में सब ने यही कहाँ , प्यार करो तो सच्चे दिल से |
प्यार में बस देना सीखो , लेने की तुम कभी मत सोचो |
जिस प्यार में किसी का दिल न दुखे , बस उसी का जलवा है |
इसीलिए   ऐसा लगता है मुझे न जाने कहाँ प्यार खो गया है ||
                                                                  आपका शुभचिन्तक
                                                          अजय बनारसी  मो . न. 9871549138

मैं हिंदी हूँ .

मैं हिंदी हूँ और माँ भी पर कोई मुझे माँ कहें कोई कहे भाषा

मै हिंदी हूँ और माँ भी ,पर कोई मुझे माँ कहे कोई कहे भाषा  |
क्या लोग अपनी माँ को नही पहचानतें ,कहाँ से आये है और रहतें कहाँ है ये भी नही जानते  |
क्या मेरे बेटे इतने नादान है , हिंदुस्तान कितना महान है ये भी नहीं जानते  ||
ना दिल दुखै ना दर्द होवे , चाहे कितना भी करो मेरा तिरस्कार  |
ऑंख से आंसू गिरता है , जब करते हो आपस में तकरार  |
सारी भाषाएँ हम बहनें है , ये तुम क्यों नही मानते  ||
अपनों से अच्छे बहनों के बेटे , जो प्यार से कहे मौसी प्रणाम |
पर अपने तो मौसी को ही , कहते है माँ प्रणाम |
मौसी को माँ कहना बुरा नहीं , पर अपनी जिन्दा माँ को क्यों हो मारते ||
मै जानती हूँ आजकल अपनी माँ को भी , माँ कहने में शरमातें है |
बस इसीलिए बहनों के बेटे  , तुम्हारी माँ आगे अपना सीना फूलते है |
ये चुभन अब सहा नही जाये , ये तुम क्यों नही मानते ||
कुछ लोग कहते है सौ में नब्बे  बेईमान , फिर भी मेरा भारत देश महान |
माँ महान होती है बेटो से  , इसमें  माँ का क्या दोष |
जो भूला है अपनी माँ को एक दिन वो रोता है , ये तुम क्यों नही मानते ||
ये सब मै इसलिए कह रही हूँ , क्योंकि मै हिंदी हूँ और माँ भी ||

इस धरा पे हमारा कुछ भी नही है .

आज के दौर में सबकी जिंदगी टेंशन से इतनी ज्यादा भरी है की चारो तरफ भागमभाग मची हुई है , हर किसी को आगे निकलने की होड़ है | चाहे वो छात्र हो , नौकरी पेशा हो ,या बिजनेस मैन हो या किसान सभी एक दुसरे को पछाड़ना चाहते है चाहे इसके लिए किसी भी हद तक गिरना पड़े या उठना पड़े | इनमे सबसे ज्यादा तनाव में छात्र होते है ,क्योंकि इन्हे अपना करियर सवारना  होता है  बाकी लोग अपने परिवार को सवारते है ,और उन्ही को सवारने में अपने आप को भी सवारना भूल जाते है , और छात्र अपना करियर सवारने के चक्कर में अपने आप को भूल जाते है | वो करियर अपने ख़ुशी के लिए नही किसी और को खुश करने के लिए सवारते है और कभी - कभी करियर सवारते - सवारते बीच में ही हार मान जाते है और अपनी इहलीला तक को समाप्त कर लेते है , जो की बहुत ही घृणित कार्य है | वो भी बस इस भय से की अब वे अपना हारा हुआ चेहरा कैसे उनको दिखाऊ जिनके सामने बड़ी - बड़ी डींगे मारा करता था , जबकि वो खुद हारे हुए होते है तभी तो वे वहां बैठे रहे और आप आगे बढकर कम से कम प्रयास तो किया नहीं तो यहीं डिंग वो नहीं मारते |
यहाँ पर सबसे बड़ी बात होती है अनुभव की कभी - कभी छात्र अनुभव की कमी के कारण भी गलत कदम उठा लेते है लेकिन इन सबमे सबसे बड़ी भूमिका होती है माता और पिता की , माँ को जागरूक माँ बनना होगा क्योंकि अपने बच्चे को सबसे ज्यादा माँ ही जानती है व पहचानती है | एक समय ऐसा आता है की छात्र अपने करियर को लेकर ज़रूर बेहद तनाव में होता है की मई कौन सा क्षेत्र चुनु , उसे बिलकुल समझ में नही आता की वो क्या करे इंजीनियर बने या डॉक्टर ,वो समय छात्र जीवन का सबसे विकट उहापोह की इस्थिति होती है उस समय माँ छात्र के लिए काफी मदतगार हो  सकती है , की मेरा बता कौन सा काम खूब मन लगाकर और खुश होकर करेगा , माँ अब तक के अपने बेटे के क्रियाकलापों को देखकर अनुभव के द्वारा एकदम सटीक बता सकती है  और बेटे के उस क्षेत्र में ऊँचा मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकती है जो की बेटे के भविष्य के लिए बहुत ही लाभकारी होगा |
सबसे बड़ी बात यही है की इस समय हम ज़िन्दगी को नही ज़िन्दगी   हमें जी रही है बच्चा पैदा हुआ नही की बड़ी - बड़ी आकंक्षाये आप लाडले के ऊपर डाल देते है बच्चा भार सह लिया तो ठीक नही तो पुरे परिवार की नैया डूबना तय है , पिता को अपने बच्चे को पूरी आज़ादी देनी होगी अपने भारी भरकम आकांक्षाओ से ,नही तो बेटा जिस दिन उनके सपनो को पूरा नही कर पायेगा पिता को भी बहुत दुःख होगा | पिता को अपनी ज़िन्दगी जीते हुए अपने बच्चे को भी ज़िन्दगी का असली फलसफा सिखाना होगा ,ताकि वे ज़िन्दगी जिए ज़िन्दगी उनको नही | अरे काहे का टेंशन यार क्या मई लेकर आया था जो खो गया और हम चिंता में डूब गए ? इस दुनिया में हमारा कुछ भी नही है , यह सब प्रकृति का है तो फिर क्यों हम उसे अपना बनाने पर तुले हुए है सबसे बड़ी दुःख की बात यही है की माता पिता अपना सारा टेंशन अपने बेटे को थोक के भाव में दे देते है और बेटा भी अपनी सपनो की दुनिया से जब बाहर आते है तो आकांक्षाओ का पहाड़ देखकर दर जाते है की अब इसे कैसे उठाया जाय और छात्र से यही प[इ सबसे बड़ी चुक हो जाती है ,उनको डरना नही चाहिए बल्कि कर्म को ही पूजा समझकर अपना सर्वक्श्रेष्ट प्रदर्शन करना चाहिए पास हुए तो ठीक नही तो घबराना नही चाहिए क्योंकि परीक्षा लेने वाला कोई विधाता नही है जो आपका भविष्य फल ज़ारी कर देता है की अब आप कुछ नही कर सकते और आगे की तुम्हारी ज़िन्दगी नरक जैसी है | अपना विधाता हम खुद है जैसा चाहे हम अपना भविष्य फल ज़ारी कर सकते है ,और उसे पूरा भी कर सकते है | ज़रूरत है बस इमानदारी ,मेहनतऔर आकांक्षा की | अगर आप अच्छा बनेगे तो आपके साथ अच्छा ही होगा , बुरा बनेगे तो बुरा होगा इसलिए हमेशा अच्छाई अपनानी चाहिए बड़ी - बड़ी बिल्डिंगे , गाडी , पैसा सुख की गारंटी नही है क्योंकि जिस वस्तु में या चीज में हम सुख खोजते है वही वस्तु वही चीज़ हमारे लिए एक दिन दुःख का कारण बनती है |

चाहे वो कोई भी वस्तु हो , प्रकृति ने आपको बेटा दिया है आप बड़े खुश हुए और उसी बेटे से आकांक्षा पाल ली, उम्मीद लगा ली
प्रकृति ने अपना बेटा ले लिया तो क्या हम सुखी हो जाते है , हम बहुत ही दुखी हो जाते है और उसी बेटे की याद में रो रो कर अपनी जान तक दे देते है ,वो भी उसके लिए जो की उनका है ही नही |
जब इस पृथ्वी पर अपनी कोई वस्तु है ही नही तो क्यों हम आकांक्षा पाले ? हाँ अगर उम्मीद आकांक्षा करनी है तो प्रकृति से करिए जो हमेशा आपके सुख के लिए कुछ न कुछ देती रहती है बिना आकांक्षा के सिर्फ हमारे ख़ुशी के लिए | प्रकृति हमें यहाँ भेजती है सिखाने के लिए तो हमारा फ़र्ज़ बनता है की हम जो कुछ भी सीखे पूरे मनोयोग से क्योंकि सीखना ही हमारे खाने पिने का साधन है | इसलिए मई तो यही कहुगा जो की पुराना भी है -
      की कर खुदी को बुलंद इतना की खुदा भी पूछे बता बन्दे तेरी रज़ा क्या है |
                                                                              आपका शुभचिंतक
                                                                    अजय  बनारसी  .

हर मर्ज़ की दवा ध्यान है

जिस किसी भी हॉस्पिटल में जाओ मरीजो की संख्या हैरान कर देने वाली होती है , बहुत ही दयनीय इस्थिति में लेते हुए कराहते रहते है .ये क्या है अज्ञानता ही तो है , जिससे वो अपनी जीवन नरक बना लेते है , अब आप पूछेगे  की ज्ञान क्या है  तो मै आपको बता देना चाहता हूँ की अपने आप को पहचान लेना ही ज्ञान है , फिलहाल इस बारे में अभी नही बात कर पाऊंगा क्योकि  मै जो बताना चाहता हूँ वो ये की हर मर्ज़ की दवा हमारे पास ही है , हर इन्सान में इतनी शक्ति होती है की वो कैंसर जैसी घातक बिमारी को  भी ठीक कर सकती है अब आप मुझे मूर्ख समझ रहे होगे या पागल क्योकि पुरे विश्व में कैंसर जैसी घातक बिमारी का कोई इलाज ही नही है , लेकिन मै कहता हूँ कैंसर या किसी भी बिमारी का इलाज हमारे पास ही है ,.

ये चैलेन्ज नही अजय बनारसी का दावा है , वो इलाज यानी दवा कौन सी है बहुत ही साधारण और वो ये की अपने इष्टदेव का पुरे मनोयोग से ध्यान लगाना , ज्यादा नही सिर्फ आधे घंटे सुबह और आधे घंटे शाम फिर देखिये आपकी कोई भी बिमारी जलकर भष्म हो जायेगी सदा - सदा के लिए शर्त बस यह है की अपने दिल में किसी भी जीव के लिए अहितकारी वचन न बोले ,न सोचे , न देखे और न ही किसी के दिल को दुःख पहुचाये सबके लिए अच्छा ही सोचे और करे चाहे वो आपका सबसे बड़ा दुश्मन ही क्यों न हो ,ये सब बाते मै इतने विश्वास से इसलिए कह रहा हूँ क्योकि ये प्रयोग मैंने किसी चूहे पे नही अपने ऊपर ही किया है बवासीर जैसी कष्ट कारक बिमारी जलकर भष्म हो गयी बिन दवा बिन इलाज के .

असली बात हमारे अन्दर वो शक्ति कंहा है तो मै आपको बता देना चाहता हूँ की हमारे शरीर का निर्माण पांच तत्व से मिलकर हुआ है
जो की आप जानते भी होगे , १- जल , २- वायु  , ३ - अग्नि , ४- आकाश , ५- पृथ्वी . और हमारे शरीर के अन्दर तीन नाडिया होती है ,१- पिंगला नाडी, २- इडा नाडी  , ३- सुषुम्ना नाडी , और हमारे शरीर के अन्दर सात चक्र भी होते है ,१- गुदा द्वार के ऊपर मूलाधार
२- उससे थोडा ऊपर स्वाधिष्ठान , ३- नाभि , ४- अनहत ह्रदय , ५- विशुधि गले के पास , ६- आज्ञा मष्तिष्क के पास ,७- सहस्त्रार तालू , ये सात चक्र होते  है , यानी हमारे पुरे शरीर का निर्माण पांच तत्व , तीन नाडी और सात चक्र से मिलकर हुआ है ,जब हम पुरे मनोयोग व निरछल भाव से अपने इष्टदेव का हम ध्यान लगाते है तो तीनो नाडिया और सातो चक्र क्रियाशील हो जाते है और शरीर के अन्दर जीतने भी रोग ,दोष ,विकार विराजमान होते है दोनों हाथो के माध्यम से वायु तत्व में विलीन हो जाता है ,और एक दिन ऐसा आता है की आप सर्वज्ञानी और सर्वशक्तिमान हो जाते है और अंत में मोक्ष को प्राप्त हो जाते है .
लेकिन आज के माहौल में चारो तरफ अराजकता ,भ्रष्टाचार , मंहगाई ने अपना जड़ इतना मज़बूत कर  लिया है की हम भी इन्ही बातो में उलझ कर रह गये है जिसका अंत बहुत ही कष्टकारक होता है , हमें इस जंजाल से बाहर निकल कर सबके सामने ज़िन्दगी की इस सच्चाई को लाना ही होगा ,अगर किसी एक भी शाख्श का दिल इस सच्चाई को कबूल कर लेता है तो समझिये आपके पुरे जीवन की साधना पूर्ण हो गयी |
अगर अब भी आपको मेरे इन  बातो पे शक है तो आज शाम को ही घर पर हाथ मुंह धोकर एक दीपक जलाकर अपने इष्टदेव के सामने पुरे मनोयोग से उन्ही का ध्यान लगाए और अपने दोनों हाथ का पंजा खोलकर रखे ध्यान न भटकने पाए कुछ ही देर  में आप पायेंगे की आपकी तीनो नाडिया और सातो चक्र काम करना शुरू कर दिया है और आपके हाथ का पंजा काफी गर्म हो जाएगा
जिससे सारी गन्दगी निकलती है जिस दिन आपके शरीर के सारे विकार निकल जायेंगे आप के हाथ का पंजा शीतल होता हुआ प्रतीत होगा .
और इसके साथ ही आपको जो आनंद मिलेगा इस पुरे जगत में आपको प्राप्त नही होने वाला है .तो फिर देर किस बात की आज से ही कम से कम एक घंटा अपने इष्टदेव को देना शुरू करिए सारे रोग , दोष , चिंता से मुक्त हो जाएये शर्त बस वही है किसी का भी बुरा ना सोचे सिर्फ अच्छा ही अच्छा सोचे और करे आखिर में मै तो बस यही कहुगा -

                                          ध्यान ज़िन्दगी की ज़रूरत नही
                                         ज़िन्दगी ही ध्यान है |
                                 आपका शुभचिन्तक
                               अजय बनारसी .

खुद को बदलिए दुनिया बदल जाएगी .

आज के परिवेश में हम खुद को इतना बदल चुकें है कि जहाँ से मानव जाती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गयी विश्व भर के नेताओं
को कोपेनहेगन सम्मेलन करना पड़ रहा है और जिसका कोई समाधान ही नहीं निकलता लग रहा है ,
जरा सोचिएं क्या ऐसे सम्मेलन करने भर से ही हमारी समस्या ख़त्म हो जाएगी ? नहीं ना ,तो फिर क्यों हम करोडो डॉलर खर्च कर
ये सम्मेलन करे ? बात सिधी सी है हमें शुरुआत जड़ से करनी होगी और हम तना पकड़ कर झूल रहे है  जिसका परिडाम आप जानते ही होगे | चलिए हम आपको थोडा पिछे ले चलते है , हमारे पूर्वज कम से कम १२० -१३० साल तक जिन्दा रहते थे और आज हम ७० - ८० साल से ज्यादा नहीं जी पाते , क्या आपने कभी सोचा है क्यों ? हम पूरे साल जम के पैसा कमाते है और साल में सिर्फ एक महिना हम सैर के लिए जाते है जहाँ हमें अच्छा लगता है और शुद्ध वातावरण भी मिल जाता है , लेकिन हमारे पूर्वज १२हो  मास शुद्ध वातावरण में रहते थे , मतलब साफ है हमें खुद को बदलना होगा नही तो  पैसे  और विकास का लालच हमें ऐसे राह पे ले जाएगा जिसका अंत बहुत ही भयानक होगा |
आज के दौर में किसी के पास समय नही है कि जीससे हमारा अस्तित्व है उनको भिथोड़ा याद कर ले हमें बस इतना याद है कि हम
कितना पैसा कमाएं और सबसे अमीर आदमी बन जाय चाहे इसके लिए किसी का दिल दुखाना पड़ जाए कोई हर्ज़ नही , मुझे
मालूम है अब मेरी ये बातें आपको प्रवचन लग रही होगी और प्रवचन पढ़ना और सुनना आपको अच्छा नही लगता लेकिन क्या करे
हमारी समस्या का हल भी इसी प्रवचन में है , सबसे पहले हमें अपनी सोच  बदलनी होगी रुपयें हम कमायें खूब लेकिन उन रुपयों
में से कुछ हिस्सा मजबूर गरीबो को भी दे जिससे उनकी तकलीफ कुछ कम हो सके , हमे ये गलाकाट प्रतिस्पर्धा छोड़कर एक दुसरे
के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहियें और सबसे ज़रूरी बात है वो ये कि अगर हम अपने आप को बदलना चाहते है तो हमें
प्रभू शरणागत होना पड़ेगा तभी हमारे अन्दर आत्मविश्वास मज़बूत होगा और आप जानते ही होगे मज़बूत आत्मविश्वास किसी भी
तूफान को मोड़ सकने में सक्षम है और तभी हमारे भीतर वो भाव भी उत्पन्न होगे जो ज़गतकल्याण कारी होगे  , और हमें शुरुआत
अपने घर से करनी होगी , हमारी जो नई पौध है उनके भीतर इश्वरीय बीज रोपना होगा जिससे आने वाली पीढ़ी में वो बीज न रोपना
पड़े और ज़गत का कल्याण हो सके |
मुझे मालूम है हर घर में पूजा होती  है अपने इष्टदेव कि मूरत रखकर लेकिन पूजा करने वाले शायद ये नही जानते उनके इष्टदेव तभी प्रसन्न होगे जब हम मानवता कि भी पूजा करे , मै लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन शब्ब्दो के पाबन्दी के कारन
मुझे यही पे समेटना पड़ेगा , कुल मिलाकर हमे एक बार फिर उन महापुरुषों के वाणी को याद करना चाहियें जो मानव कल्याणकारी
हुआ करते थे  और है जैसे -कबीर  , सूरदास ,वाल्मीकि ,  भगवान् बुद्ध , अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे के जायेंगे खुशहाल जिंदगी या भयानक मौत |
                                                                          अब आखिर में मुझे यही कहना है -

कौन कहता है आसमान में सुराख  नही हो सकता , एक पत्थर तो तबियत से तो उछालो यारो  |
                                                                                                                आपका शुभचिंतक
                                                                                                                             (अजय बनारसी )
                                                                                                                   म. न .-   9871549138

विचार ही विकास की धारा है .

हम सभी जानते है कि मै कितना बिकास करुगा ये हमारी सोच या विचार पे निर्भर करता है , जैसा हम  सोचते है ज़िन्दगी भी वैसी ही हो जाती है | तो हम अच्छा क्यों नहीं सोचते ? बेकार की बातों में अपना समय और उर्जा हम क्यों नष्ट करते है ? आज मै आपको
वे बातें बताना चाहता हूँ जो शायद आप जानते भी है , लेकिन उसे याद नहीं रखना चाहते | अब वो समय आ गया है कि हमें उन बातों को याद ही नहीं बल्कि अपने जीवन में अमल भी करे , नही तो सारे लोग रोयेंगे और कुछ लोग हंसना भी चाहेंगे तो रोने वालो कि संख्या इतनी ज्यादा होगी कि साथ में उनको भी रोना पड़ेगा | अगर हम हँसना चाहते है तो उनको भी हँसाना पड़ेगा जो लोग रो रहे है | और इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच यानी विचार को बदलना पड़ेगा | अब आता हूँ मेन तथ्य पे वो बाते जो हमें याद रखनी चाहियें |
आप इस समय मेरा लेख पढ़ रहे है और समझ भी रहे होगे जिससे आपके दिमाग पर जोर भी लग रहा होगा , क्या आप जानते है लेख पढ़ने में आपका कितना बेशकीमती उर्जा खर्च हो रहा है ? नही ना , ये जो उर्जा आप खर्च कर रहे है पुरे ब्रम्हांड में इसके ताकत का कोई भी शक्ति सामना नहीं कर सकता | क्यों चौक गये ना लेकिन यह सत्य है | अगर आप इसके ताकत को आज़माना चाहते है तो इसे आप बचाइए ना जब यह ढेर सारा एकत्रित हो जायेगा उसके बाद आपको खुदबखुद उसके शक्ति का पता चल जायेगा जो कि काफी चौकाने वाले होगे | हम चाहे कुछ भी करते है हमारी उर्जा लगातार खर्च होती रहती है , चाहे पढ़ रहे हो , खेल रहे हो , कुछ भी सोच रहे हो या किसी थिएटर में फिल्म देख रहे हो ? अब आप सोच रहे होगे कि फिल्म देखने से तो लोग तरोताजा होते है तो जरा उस क्षण को याद करिए जब आप तीन घंटे थिएटर में गुजारकर बाहर निकलते है , तो क्या आप तरोताजा हो जाते है ? नहीं बल्कि ऐसा लगता है जैसे किसी ने धुन दिया हो ,क्यों क्योंकि हम लगातार तीन घंटे अपना कीमती उर्जा नष्ट कर देते है , जो कि थोडा तेज़ गती में होता है | जितना अधिक जोर हम दिमाग पर देगें उसी गती से हमारी उर्जा नष्ट होगी | हमारी उर्जा दो तरह से खर्च होती है , पहला शारीरिक क्ष्रम द्वारा और दूसरा मानसिक क्ष्रम द्वारा , शारीरिक क्ष्रम से जो उर्जा खर्च होती है वो ताकत (बल ) होती है ,और मानसिक क्ष्रम द्वारा जो उर्जा खर्च होती है वो ज्वाला होती है , जैसे सूर्य कि तेज़  किरण | ताकत यानि बल हमें अन्न और जल से प्राप्त होती है , लेकिन मानसिक उर्जा कहाँ से प्राप्त होगी जप और तप के द्वारा | जप यानि प्रभु जी का नाम जपना ,तप यानि लोगो कि सेवा करना जो कि शायद आज हम नहीं करते | जरा सोचिये हमारी एकत्रित उर्जा खर्च हो रही है और ग्रहण हम कुछ भी नहीं कर रहे , जिससे हम धीरे - धीरे कमज़ोर हो जाते है और सोचने कि शक्ति कम हो जाती है , अरे ये जीना भी कोई जीना है ? उठो जागो और एकत्रित कर लो ढेर सारा उर्जा फिर ये पृथ्वी क्या जीत लो पुरे ब्रम्हांड को |
इसके लिए हमें अपने विचार को बदलना होगा और सिर्फ काम  की ही बात सोचना और करना होगा बेकार की बातें हमारे दिमाग में नहीं आये ,काम की बात से जब दिमाग खाली  हो  तब हमे जप करनी चाहिए वर्ना दिमाग तो कुछ न कुछ बेकार की बातें सोचेगा ही ,और आपकी उर्जा को भी नष्ट करेगा ,तप करने की सामर्थ्य आपमें नही है तो जप करिए तप का सामर्थ्य अपने आप हो जाएगा    
अब ये आपके ऊपर निर्भर करता है की बेकार में उर्जा नष्ट करते है या उसका सही इस्तेमाल करते है | काम थोडा मुस्किल ज़रूर है लेकिन असम्भव नहीं , क्योंकि हमारा उद्देश्य भी यही है और यही होना भी चाहिए तभी आपका और सबका जीवन आनन्दमय हो पायेगा मेरे हिसाब से ये बातें थोड़ी गंभीर है इसलिए इसपे विचार करियेगा ज़रूर क्योकि विचार ही विकास  की धारा है .
                                                                                                                             धन्यवाद
                                                                                                            आपका शुभचिंतक
                                                                                      अजय बनारसी  मो . न. - ९८७१५४९१३८.