Wednesday, March 10, 2010

विचार ही विकास की धारा है .

हम सभी जानते है कि मै कितना बिकास करुगा ये हमारी सोच या विचार पे निर्भर करता है , जैसा हम  सोचते है ज़िन्दगी भी वैसी ही हो जाती है | तो हम अच्छा क्यों नहीं सोचते ? बेकार की बातों में अपना समय और उर्जा हम क्यों नष्ट करते है ? आज मै आपको
वे बातें बताना चाहता हूँ जो शायद आप जानते भी है , लेकिन उसे याद नहीं रखना चाहते | अब वो समय आ गया है कि हमें उन बातों को याद ही नहीं बल्कि अपने जीवन में अमल भी करे , नही तो सारे लोग रोयेंगे और कुछ लोग हंसना भी चाहेंगे तो रोने वालो कि संख्या इतनी ज्यादा होगी कि साथ में उनको भी रोना पड़ेगा | अगर हम हँसना चाहते है तो उनको भी हँसाना पड़ेगा जो लोग रो रहे है | और इसके लिए सबसे पहले हमें अपनी सोच यानी विचार को बदलना पड़ेगा | अब आता हूँ मेन तथ्य पे वो बाते जो हमें याद रखनी चाहियें |
आप इस समय मेरा लेख पढ़ रहे है और समझ भी रहे होगे जिससे आपके दिमाग पर जोर भी लग रहा होगा , क्या आप जानते है लेख पढ़ने में आपका कितना बेशकीमती उर्जा खर्च हो रहा है ? नही ना , ये जो उर्जा आप खर्च कर रहे है पुरे ब्रम्हांड में इसके ताकत का कोई भी शक्ति सामना नहीं कर सकता | क्यों चौक गये ना लेकिन यह सत्य है | अगर आप इसके ताकत को आज़माना चाहते है तो इसे आप बचाइए ना जब यह ढेर सारा एकत्रित हो जायेगा उसके बाद आपको खुदबखुद उसके शक्ति का पता चल जायेगा जो कि काफी चौकाने वाले होगे | हम चाहे कुछ भी करते है हमारी उर्जा लगातार खर्च होती रहती है , चाहे पढ़ रहे हो , खेल रहे हो , कुछ भी सोच रहे हो या किसी थिएटर में फिल्म देख रहे हो ? अब आप सोच रहे होगे कि फिल्म देखने से तो लोग तरोताजा होते है तो जरा उस क्षण को याद करिए जब आप तीन घंटे थिएटर में गुजारकर बाहर निकलते है , तो क्या आप तरोताजा हो जाते है ? नहीं बल्कि ऐसा लगता है जैसे किसी ने धुन दिया हो ,क्यों क्योंकि हम लगातार तीन घंटे अपना कीमती उर्जा नष्ट कर देते है , जो कि थोडा तेज़ गती में होता है | जितना अधिक जोर हम दिमाग पर देगें उसी गती से हमारी उर्जा नष्ट होगी | हमारी उर्जा दो तरह से खर्च होती है , पहला शारीरिक क्ष्रम द्वारा और दूसरा मानसिक क्ष्रम द्वारा , शारीरिक क्ष्रम से जो उर्जा खर्च होती है वो ताकत (बल ) होती है ,और मानसिक क्ष्रम द्वारा जो उर्जा खर्च होती है वो ज्वाला होती है , जैसे सूर्य कि तेज़  किरण | ताकत यानि बल हमें अन्न और जल से प्राप्त होती है , लेकिन मानसिक उर्जा कहाँ से प्राप्त होगी जप और तप के द्वारा | जप यानि प्रभु जी का नाम जपना ,तप यानि लोगो कि सेवा करना जो कि शायद आज हम नहीं करते | जरा सोचिये हमारी एकत्रित उर्जा खर्च हो रही है और ग्रहण हम कुछ भी नहीं कर रहे , जिससे हम धीरे - धीरे कमज़ोर हो जाते है और सोचने कि शक्ति कम हो जाती है , अरे ये जीना भी कोई जीना है ? उठो जागो और एकत्रित कर लो ढेर सारा उर्जा फिर ये पृथ्वी क्या जीत लो पुरे ब्रम्हांड को |
इसके लिए हमें अपने विचार को बदलना होगा और सिर्फ काम  की ही बात सोचना और करना होगा बेकार की बातें हमारे दिमाग में नहीं आये ,काम की बात से जब दिमाग खाली  हो  तब हमे जप करनी चाहिए वर्ना दिमाग तो कुछ न कुछ बेकार की बातें सोचेगा ही ,और आपकी उर्जा को भी नष्ट करेगा ,तप करने की सामर्थ्य आपमें नही है तो जप करिए तप का सामर्थ्य अपने आप हो जाएगा    
अब ये आपके ऊपर निर्भर करता है की बेकार में उर्जा नष्ट करते है या उसका सही इस्तेमाल करते है | काम थोडा मुस्किल ज़रूर है लेकिन असम्भव नहीं , क्योंकि हमारा उद्देश्य भी यही है और यही होना भी चाहिए तभी आपका और सबका जीवन आनन्दमय हो पायेगा मेरे हिसाब से ये बातें थोड़ी गंभीर है इसलिए इसपे विचार करियेगा ज़रूर क्योकि विचार ही विकास  की धारा है .
                                                                                                                             धन्यवाद
                                                                                                            आपका शुभचिंतक
                                                                                      अजय बनारसी  मो . न. - ९८७१५४९१३८.

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