Wednesday, March 10, 2010

खुद को बदलिए दुनिया बदल जाएगी .

आज के परिवेश में हम खुद को इतना बदल चुकें है कि जहाँ से मानव जाती का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गयी विश्व भर के नेताओं
को कोपेनहेगन सम्मेलन करना पड़ रहा है और जिसका कोई समाधान ही नहीं निकलता लग रहा है ,
जरा सोचिएं क्या ऐसे सम्मेलन करने भर से ही हमारी समस्या ख़त्म हो जाएगी ? नहीं ना ,तो फिर क्यों हम करोडो डॉलर खर्च कर
ये सम्मेलन करे ? बात सिधी सी है हमें शुरुआत जड़ से करनी होगी और हम तना पकड़ कर झूल रहे है  जिसका परिडाम आप जानते ही होगे | चलिए हम आपको थोडा पिछे ले चलते है , हमारे पूर्वज कम से कम १२० -१३० साल तक जिन्दा रहते थे और आज हम ७० - ८० साल से ज्यादा नहीं जी पाते , क्या आपने कभी सोचा है क्यों ? हम पूरे साल जम के पैसा कमाते है और साल में सिर्फ एक महिना हम सैर के लिए जाते है जहाँ हमें अच्छा लगता है और शुद्ध वातावरण भी मिल जाता है , लेकिन हमारे पूर्वज १२हो  मास शुद्ध वातावरण में रहते थे , मतलब साफ है हमें खुद को बदलना होगा नही तो  पैसे  और विकास का लालच हमें ऐसे राह पे ले जाएगा जिसका अंत बहुत ही भयानक होगा |
आज के दौर में किसी के पास समय नही है कि जीससे हमारा अस्तित्व है उनको भिथोड़ा याद कर ले हमें बस इतना याद है कि हम
कितना पैसा कमाएं और सबसे अमीर आदमी बन जाय चाहे इसके लिए किसी का दिल दुखाना पड़ जाए कोई हर्ज़ नही , मुझे
मालूम है अब मेरी ये बातें आपको प्रवचन लग रही होगी और प्रवचन पढ़ना और सुनना आपको अच्छा नही लगता लेकिन क्या करे
हमारी समस्या का हल भी इसी प्रवचन में है , सबसे पहले हमें अपनी सोच  बदलनी होगी रुपयें हम कमायें खूब लेकिन उन रुपयों
में से कुछ हिस्सा मजबूर गरीबो को भी दे जिससे उनकी तकलीफ कुछ कम हो सके , हमे ये गलाकाट प्रतिस्पर्धा छोड़कर एक दुसरे
के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहियें और सबसे ज़रूरी बात है वो ये कि अगर हम अपने आप को बदलना चाहते है तो हमें
प्रभू शरणागत होना पड़ेगा तभी हमारे अन्दर आत्मविश्वास मज़बूत होगा और आप जानते ही होगे मज़बूत आत्मविश्वास किसी भी
तूफान को मोड़ सकने में सक्षम है और तभी हमारे भीतर वो भाव भी उत्पन्न होगे जो ज़गतकल्याण कारी होगे  , और हमें शुरुआत
अपने घर से करनी होगी , हमारी जो नई पौध है उनके भीतर इश्वरीय बीज रोपना होगा जिससे आने वाली पीढ़ी में वो बीज न रोपना
पड़े और ज़गत का कल्याण हो सके |
मुझे मालूम है हर घर में पूजा होती  है अपने इष्टदेव कि मूरत रखकर लेकिन पूजा करने वाले शायद ये नही जानते उनके इष्टदेव तभी प्रसन्न होगे जब हम मानवता कि भी पूजा करे , मै लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूँ लेकिन शब्ब्दो के पाबन्दी के कारन
मुझे यही पे समेटना पड़ेगा , कुल मिलाकर हमे एक बार फिर उन महापुरुषों के वाणी को याद करना चाहियें जो मानव कल्याणकारी
हुआ करते थे  और है जैसे -कबीर  , सूरदास ,वाल्मीकि ,  भगवान् बुद्ध , अब ये हमारे ऊपर निर्भर करता है कि आने वाली पीढ़ी को हम क्या दे के जायेंगे खुशहाल जिंदगी या भयानक मौत |
                                                                          अब आखिर में मुझे यही कहना है -

कौन कहता है आसमान में सुराख  नही हो सकता , एक पत्थर तो तबियत से तो उछालो यारो  |
                                                                                                                आपका शुभचिंतक
                                                                                                                             (अजय बनारसी )
                                                                                                                   म. न .-   9871549138

No comments:

Post a Comment