Wednesday, March 10, 2010

इस धरा पे हमारा कुछ भी नही है .

आज के दौर में सबकी जिंदगी टेंशन से इतनी ज्यादा भरी है की चारो तरफ भागमभाग मची हुई है , हर किसी को आगे निकलने की होड़ है | चाहे वो छात्र हो , नौकरी पेशा हो ,या बिजनेस मैन हो या किसान सभी एक दुसरे को पछाड़ना चाहते है चाहे इसके लिए किसी भी हद तक गिरना पड़े या उठना पड़े | इनमे सबसे ज्यादा तनाव में छात्र होते है ,क्योंकि इन्हे अपना करियर सवारना  होता है  बाकी लोग अपने परिवार को सवारते है ,और उन्ही को सवारने में अपने आप को भी सवारना भूल जाते है , और छात्र अपना करियर सवारने के चक्कर में अपने आप को भूल जाते है | वो करियर अपने ख़ुशी के लिए नही किसी और को खुश करने के लिए सवारते है और कभी - कभी करियर सवारते - सवारते बीच में ही हार मान जाते है और अपनी इहलीला तक को समाप्त कर लेते है , जो की बहुत ही घृणित कार्य है | वो भी बस इस भय से की अब वे अपना हारा हुआ चेहरा कैसे उनको दिखाऊ जिनके सामने बड़ी - बड़ी डींगे मारा करता था , जबकि वो खुद हारे हुए होते है तभी तो वे वहां बैठे रहे और आप आगे बढकर कम से कम प्रयास तो किया नहीं तो यहीं डिंग वो नहीं मारते |
यहाँ पर सबसे बड़ी बात होती है अनुभव की कभी - कभी छात्र अनुभव की कमी के कारण भी गलत कदम उठा लेते है लेकिन इन सबमे सबसे बड़ी भूमिका होती है माता और पिता की , माँ को जागरूक माँ बनना होगा क्योंकि अपने बच्चे को सबसे ज्यादा माँ ही जानती है व पहचानती है | एक समय ऐसा आता है की छात्र अपने करियर को लेकर ज़रूर बेहद तनाव में होता है की मई कौन सा क्षेत्र चुनु , उसे बिलकुल समझ में नही आता की वो क्या करे इंजीनियर बने या डॉक्टर ,वो समय छात्र जीवन का सबसे विकट उहापोह की इस्थिति होती है उस समय माँ छात्र के लिए काफी मदतगार हो  सकती है , की मेरा बता कौन सा काम खूब मन लगाकर और खुश होकर करेगा , माँ अब तक के अपने बेटे के क्रियाकलापों को देखकर अनुभव के द्वारा एकदम सटीक बता सकती है  और बेटे के उस क्षेत्र में ऊँचा मुकाम हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकती है जो की बेटे के भविष्य के लिए बहुत ही लाभकारी होगा |
सबसे बड़ी बात यही है की इस समय हम ज़िन्दगी को नही ज़िन्दगी   हमें जी रही है बच्चा पैदा हुआ नही की बड़ी - बड़ी आकंक्षाये आप लाडले के ऊपर डाल देते है बच्चा भार सह लिया तो ठीक नही तो पुरे परिवार की नैया डूबना तय है , पिता को अपने बच्चे को पूरी आज़ादी देनी होगी अपने भारी भरकम आकांक्षाओ से ,नही तो बेटा जिस दिन उनके सपनो को पूरा नही कर पायेगा पिता को भी बहुत दुःख होगा | पिता को अपनी ज़िन्दगी जीते हुए अपने बच्चे को भी ज़िन्दगी का असली फलसफा सिखाना होगा ,ताकि वे ज़िन्दगी जिए ज़िन्दगी उनको नही | अरे काहे का टेंशन यार क्या मई लेकर आया था जो खो गया और हम चिंता में डूब गए ? इस दुनिया में हमारा कुछ भी नही है , यह सब प्रकृति का है तो फिर क्यों हम उसे अपना बनाने पर तुले हुए है सबसे बड़ी दुःख की बात यही है की माता पिता अपना सारा टेंशन अपने बेटे को थोक के भाव में दे देते है और बेटा भी अपनी सपनो की दुनिया से जब बाहर आते है तो आकांक्षाओ का पहाड़ देखकर दर जाते है की अब इसे कैसे उठाया जाय और छात्र से यही प[इ सबसे बड़ी चुक हो जाती है ,उनको डरना नही चाहिए बल्कि कर्म को ही पूजा समझकर अपना सर्वक्श्रेष्ट प्रदर्शन करना चाहिए पास हुए तो ठीक नही तो घबराना नही चाहिए क्योंकि परीक्षा लेने वाला कोई विधाता नही है जो आपका भविष्य फल ज़ारी कर देता है की अब आप कुछ नही कर सकते और आगे की तुम्हारी ज़िन्दगी नरक जैसी है | अपना विधाता हम खुद है जैसा चाहे हम अपना भविष्य फल ज़ारी कर सकते है ,और उसे पूरा भी कर सकते है | ज़रूरत है बस इमानदारी ,मेहनतऔर आकांक्षा की | अगर आप अच्छा बनेगे तो आपके साथ अच्छा ही होगा , बुरा बनेगे तो बुरा होगा इसलिए हमेशा अच्छाई अपनानी चाहिए बड़ी - बड़ी बिल्डिंगे , गाडी , पैसा सुख की गारंटी नही है क्योंकि जिस वस्तु में या चीज में हम सुख खोजते है वही वस्तु वही चीज़ हमारे लिए एक दिन दुःख का कारण बनती है |

चाहे वो कोई भी वस्तु हो , प्रकृति ने आपको बेटा दिया है आप बड़े खुश हुए और उसी बेटे से आकांक्षा पाल ली, उम्मीद लगा ली
प्रकृति ने अपना बेटा ले लिया तो क्या हम सुखी हो जाते है , हम बहुत ही दुखी हो जाते है और उसी बेटे की याद में रो रो कर अपनी जान तक दे देते है ,वो भी उसके लिए जो की उनका है ही नही |
जब इस पृथ्वी पर अपनी कोई वस्तु है ही नही तो क्यों हम आकांक्षा पाले ? हाँ अगर उम्मीद आकांक्षा करनी है तो प्रकृति से करिए जो हमेशा आपके सुख के लिए कुछ न कुछ देती रहती है बिना आकांक्षा के सिर्फ हमारे ख़ुशी के लिए | प्रकृति हमें यहाँ भेजती है सिखाने के लिए तो हमारा फ़र्ज़ बनता है की हम जो कुछ भी सीखे पूरे मनोयोग से क्योंकि सीखना ही हमारे खाने पिने का साधन है | इसलिए मई तो यही कहुगा जो की पुराना भी है -
      की कर खुदी को बुलंद इतना की खुदा भी पूछे बता बन्दे तेरी रज़ा क्या है |
                                                                              आपका शुभचिंतक
                                                                    अजय  बनारसी  .

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